भारत की पहली मस्जिद का इतिहास


 Cheraman Juma Masjid, - भारत की पहली मस्जिद(The First Mosque in India)



हिंदुस्तान के इस हिस्से में है सबसे पुरानी मस्जिद, 1400 साल पुराना है मस्जिद का इतिहास


इस्लाम, वो धर्म है जो शांति कायम करने में विश्वास रखता है। लेकिन दुनिया सहित भारत में भी इस्लाम को लेकर एक अलग सोच है कि भारत में इस्लाम सिर्फ तलवार की बदौलत पहुंचा है। क्या भारत में लोगों ने इस धर्म को तलवार के डर से  अपनाया? इस सवाल का जवाब है नहीं, ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। कई लोग इसपर बहुत सारे वाद—विवाद भी करेंगे, लेकिन हम आपको इन सभी सवालों का जवाब देने के लिए आज उस जगह के बारे में बता रहे हैं जो इस बात का सबूत है कि, जब भारत में इस्लाम पहली बार आया तो तलवार के दम पर नहीं आया था।


Cheraman Juma Masjid

हमारे देश का अंतिम छोर केरल…, जिसे ‘गॉड ओन लैंड’ भी कहा जाता है। केरल के कोच्चि के उत्तरी शहर में मेथाला नामक एक छोटा सा शहर है । यहां पर एक दो मंजिला मस्जिद है जिसकी छत पर टाइल्स लगे हुए हैं और जो स्थानीय वास्तु कला का नमूना है। इस मस्जिद को लेकर इतिहासकार कहते हैं कि यह मस्जिद जितनी पुरानी कही जाती है उतनी पुरानी नजर नहीं आती है ऐसा इसलिए क्योंकि इस मस्जिद का रखरखाव और उसकी देखभाल समय-समय पर होती ही रहती है। यह मस्जिद सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि हमारे भारतीय उपमहाद्वीप में सबसे पुरानी और पहली मस्जिद है।



इतिहास के हिसाब से इस मस्जिद को जितना पुराना माना जाता है असल में यह मस्जिद उतनी पुरानी दिखती नहीं है, ऐसा शायद इसलिए है क्योंकि इस मस्जिद की देखभाल हमेशा से समय-समय पर होती आई है। ऐसा कहा जाता है कि यह मस्जिद भारत ही नहीं बल्कि पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में सबसे पुरानी और पहली मस्जिद है।






देश में बनी पहली मस्जिद \'चेरामन जुमा\' कि निर्माण 629 ईस्वी में मलिक बिन दीनार ने करवाया था। मलिक दीनार कोडुंगालुर के शासक चेरामन पेरुमल के समकालीन थे। चेरामन पेरुमल ने मक्का की यात्रा की और इस्लाम कुबूल कर लिया था। पेरुमल ने ही मक्का के लोगों को भारत में इस्लाम का प्रचार करने के लिए आमंत्रित किया। इस बारे में यह भी कहा जाता है कि उनके कहने पर ही मलिक बिन दीनार और मलिक बिन हबीब भारत आए और इस मस्जिद का निर्माण कराया।ताजुद्दीन की याद में इस मस्जिद का नाम चेरामन जुमा मस्जिद (Cheraman Juma Mosque) रखा गया था। इतिहासकारों के मुताबिक ये दुनिया की दूसरी सबसे पुरानी मस्जिद भी है। 



इस मस्जिद को लेकर जानकारों का कहना है कि इस मस्जिद का निर्माण पैगंबर मुहम्मद साहब के जीवनकाल में ही सन् 628 ई. में किया गया था। नुकीली छतों वाली दीवारों को देखकर ऐसा लगता है कि यह 7वीं सदी में बनवाई गई होगी। कुवतुल इस्लाम मस्जिद, जो दिल्ली सल्तनत काल में बनी थी उससे भी 500 साल पहले इस (Cheraman Juma Mosque) मस्जिद का इतिहास माना जाता है। यानि की भारत के केरल में इस्लाम बहुत साल पहले ही आ गया था। 


चेरामन जुमा मस्जिद का इतिहास



हमारे देश के इतिहास के पन्ने खंगाले जाए तो भारत दुनिया भर में व्यापार का मुख्य केंद्र रहा है कुछ तो सदियों से यहां अरब समेत दुनिया भर के कई व्यापारी व्यापार करने के लिए आते जाते रहते थे। वही छठवीं और सातवीं शताब्दी के समय में व्यापार समुद्र मार्ग से होने लगा था। यह व्यापार हमारे देश के दक्षिण के मालाबार कोस्ट से लेकर दुनिया के हर कोने तक फैला हुआ था और इसी मार्ग के जरिए पश्चिम धर्म और कई आस्थाएं भी भारत में पहुंची थी। नवमी शताब्दी में भारत आए एक मुस्लिम व्यापारी सुलेमान अल ताजीर लिखते हैं कि केरल के कुछ इलाकों में मुसलमानों की बहुत बड़ी आबादी है और चेरामल मस्जिद के बारे में कहा जाता है कि राजा चेरामल पेरूमल ने ही इस मस्जिद को बनवाया है क्योंकि उन्होंने उस समय चांद के दो टुकड़ों में विभाजन की घटना को अपनी आंखों से देखा था और उन्होंने इस्लाम को कबूल कर लिया था।


इस इलाके के स्थानीय मुसलमानों के अनुसार राजा चेरामल हज के लिए मक्का भी गए थे। हाजी से वापसी के दौरान ही उनका इंतकाल हो गया और उन्हें ओमान के सलाला शहर में दफन किया गया था जहां आज भी उनका मजार मौजूद है।  हालांकि कुछ लोग यह मानते हैं कि केरल की इस मस्जिद को अरब के एक ट्रैवलर मलिक दीनार ने बनवाया था उसने और साथ ही 7 और मस्जिदें भी केरल के समुद्री किनारों पर तामीर करवाई थी।


1000 ईसवी में चेरामन जुमा मस्जिद की बनावट में बहुत सारे बदलाव भी किए गए। भारत की सबसे पुरानी मस्जिद की यह ईमारत 1504 तक बनी रही। सन् 1504 में Lopo Soares de Albergaria अटैक में पुर्तगालियों ने इस मस्जिद को धवस्त कर दिया था। लेकिन 1984 में पुरानी ईमारत को फिर से पुर्नजीवित किया गया एक नए रूप में ढ़ाला गया। लेकिन आज भी अंदर पुराने ढ़ांचे का एक रिप्लिका रखा हुआ है।



धार्मिक सद्भाव का प्रतीक है चेरामन जुमा मस्जिद

 माना जाता है कि मोपिला कम्यूनिटी के लोग पहले मुस्लिम थे, आज भी यहां की आबादी में 26.56% की हिस्सेदारी इन्हीं लोगों की है। ऐसा माना जाता है कि ये लोग या तो पहली जाति थे जिन्होंने इस्लाम कुबूल किया या ये लोग अरबों के संग सम्पर्क में आनेवाले पहले भारतीय लोग थे। ये लोग ही इस चेरामन जुमा मस्जिद में कई सालों से इबादत करते हुए आ रहे हैं। 


1) इस मस्जिद से जुड़ी खास बातें


 इस मस्जिद में एक तालाब और एक शीशम का मंच है जिस पर काफी उम्दा नक्काशी की गई है। 


- मस्जिद के अंदर प्रवेश करने पर एक संगमरमर का देखने को मिलता है। संगमरमर को लेकर लोग कहते हैं कि है कि इसे मक्का से लाया गया था। 


- मस्जिद के अंदर बीचों-बीच तेल का एक जलता हुआ दिपक भी रखा गया है। विभिन्न धर्म के लोग पवित्र उत्सवों पर इस दिए के लिए तेल लाते हैं। कहां जाता है कि यह दिया सालों से मौजूद है और बुझा भी नहीं है। इस अनोखे दीपक में हिंदू मुस्लिम और सभी धर्मों के लोग तेल डालते हैं और प्रार्थना करते हैं।।




- शुरुआत में इस मस्जिद की तामीर लकड़ी से की गई थी लेकिन धीरे-धीरे मरम्मत होकर यह मस्जिद वर्तमान में एक बिल्कुल नए रूप में नजर आती है।


- चेरमन जुमा मस्जिद के अंदर मलिक दीनार और उसकी बहन की कब्र भी मौजूद हैं।


इस मस्जिद में एक संग्रहालय भी है, जिसके केंद्र में एक सीसे की पेटी में मस्जिद का एक छोटा नमूना और प्राचीन काल की कई कलात्मक महत्व की वस्तुएं रखी हुई हैं।  


केरल के त्रिशुर ज़िले में देश की सबसे पुरानी  चेरामन पेरुमल मस्जिद अपनी धर्मनिरपेक्ष विचारधारा के लिए मशहूर है।



रमभम संस्कार

मस्जिद परिसर में ही स्थापित संग्रहालय से जुड़े ईवीएम कहते हैं, "यहाँ सभी धर्म के लोगों का स्वागत है। यहाँ कुछ ग़ैर मुस्लिम बच्चे मस्जिद के इमाम साहब के साथ पढ़ाई-लिखाई की दुनिया में पहला क़दम रखने आते रहते हैं। इस समारोह को विद्या रमभम कहा जाता हैं। रमभम संस्कार के पीछे लोगों की मान्यता हैं कि ऐसा करने से बड़ों का आशीर्वाद हमेशा उनके बच्चों के साथ रहेगा। मस्जिद के ट्रस्टीस भी उन सभी बच्चों का स्वागत करना अपनी ज़िम्मेदारी समझते हैं।"

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