मशहूर बादशाह सद्दाम हुसैन का जन्म 28 अप्रैल 1937 को बग़दाद के उत्तर में स्थित तिकरित के पास अल-ओजा गांव में हुआ था। उनके मजदूर पिता उनके जन्म के पहले ही इस दुनिया को अलविदा कह चुके थे।
सद्दाम हुसैन बचपन से ही निडर और बहादुर थे। सद्दाम हुसैन हमेशा अपने पास एक लोहे की छड़ी रखते थे।
जवान होते होते ही वह राष्ट्रवादी आंदोलन में कूद पड़े। उस बाद साल 1956 में वह बाथ सोशलिस्ट पार्टी में शामिल हो गए।
सदाम हुसैन लगातार दस वर्ष तक ईरान से लड़ते रहे, उनकी छवि एक जुझारू लड़ाके की बन चुकी थी। साल उन्होंने 1990 में कुवैत पर कब्जा कर लिया। इससे वह अमेरिकी सत्ता प्रतिष्ठानों की नजरों में आ गए और जल्दी ही खाड़ी युद्ध भी शुरू हो गया। करीब 42 दिन के युद्ध के बाद इराक अमेरिकी गठबंधन सेनाओं से पराजित तो हुआ फिर भी सद्दाम हुसैन झुके नहीं। इसी वजह से बार-बार अमेरिका को डर लग कि वह उनके लिए फिर चुनौती बन सकते हैं। साल 2003 में अमेरिका ने फिर से सद्दाम हुसैन के खिलाफ युद्ध शुरू किया और उसके बाद जो हुआ वह सारी कहानी हमारे सामने है। सद्दाम हुसैन एक बहादुर बादशाह से उन्होंने जिस तरह से अपने आप को अंतरराष्ट्रीय फलक पर पेश किया था और वह अमेरिका के आगे बिल्कुल नहीं दोगे इससे उन्होंने वाकई खुद को अरब जगत का नायक साबित कर दिया था।
साल 1982 में सद्दाम हुसैन पर जानलेवा हमले की कोशिश करने पर दुजैल में 148 शियाओं को मार दिया गया था।
सद्दाम हुसैन और उनके साथियों को इसी मामले में दोषी करार गया था और इराक़ की एक अपील अदालत ने उनकी अपील ख़ारिज कर दी थी।
सद्दाम हुसैन को फाँसी दिए जाने से एक दिन पहले सद्दाम के वकील ने वाशिंगटन में एक अदालत से अपील की थी कि सद्दाम हुसैन को इराक़ी अधिकारियों के हवाले न करने के निर्देश दिए जाएँ। लेकिन अमरीकी अदालत ने इस अपील को सिरे से ख़ारिज कर दिया था।
दो दशक तक शासक रहे
सद्दाम हुसैन दो दशक से भी ज़्यादा समय तक इराक़ के शासक रहे थे।
सद्दाम हुसैन का जन्म वर्ष 1937 के अप्रैल महीने में बग़दाद के उत्तर में स्थित तिकरित के एक गाँव में हुआ था.
दो दशक से ज़्यादा समय तक इराक़ के शासक रहे, देश के पूर्व राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन को उत्तरी बग़दाद में स्थानीय समयानुसार तड़के छह बजे फाँसी दी गई थी। सालों बाद जब सद्दाम हुसैन की कब्र को खोला गया तो उनका जिस्म मुबारक बिल्कुल वैसा ही था जैसे अभी ही दफन किया गया हो।
इराक़ के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मौफ़ाज़ अल-रूबेई फाँसी दिए जाने के गवाह थे और उन्होंने बताया कि इस पूरी प्रक्रिया की वीडियो फ़िल्म भी बनाई गई थी।
उन्होंने कहा था कि हथकड़ियों में सद्दाम हुसैन को चुपचाप फाँसी के तख़ते तक ले जाया गया। उनका कहना था कि सद्दाम हुसैन के हाथ में पवित्र क़ुरान था और वे काफ़ी गमगीन नज़र आ रहे थे।
सद्दाम हुसैन ने फाँसी दिए जाते वक्त किसी तरह का विरोध भी नहीं किया लेकिन काला नकाब पहनने से इनकार कर दिया था।
सद्दाम हुसैन की जिंदगी के आखिरी लम्हें
सद्दाम हुसैन की सुरक्षा में लगाए गए बारह अमेरिकी सैनिक उनकी पूरी जिंदगी के बेहतरीन साथी न सही, लेकिन उनके आखिरी मित्र जरूर थे। सद्दाम हुसैन के आखिरी समय तक साथ रहे 551 मिलिट्री पुलिस कंपनी से चुने गए इन सैनिकों को 'सुपर ट्वेल्व' कहा जाता था। इनमें से एक सिपाही जिनका नाम विल बार्डेनवर्पर है उन्होंने ने एक किताब लिखी है, 'द प्रिजनर इन हिज पैलेस, हिज अमैरिकन गार्ड्स, एंड व्हाट हिस्ट्री लेफ़्ट अनसेड'। इस किताब उन्होंने सद्दाम हुसैन की सुरक्षा करते हुए उनके आखिरी दिनों के लम्हात को लिखा किया है।
अमेरिकन सिपाही विल बार्डेनवर्पर, जो सद्दाम हुसैन की सुरक्षा में रखे गए 'सुपर ट्वेल्व' अमेरिकी सिपाहियों की टीम का हिस्सा थे। बार्डेनवर्पर कहते हैं कि जब उन्होंने सद्दाम हुसैन को उन लोगों के हवाले किया जो उन्हें फांसी देने वाले थे, तो सद्दाम हुसैन की सुरक्षा में लगे सभी सिपाहियों की आंखों में आंसू थे और सभी गमगीन थे।
बार्डेनवर्पर ने अपने एक साथी एडम रोजरसन के हवाले से लिखा हैं कि, 'हमने सद्दाम को हत्यारे के रूप में कभी भी नहीं देखा। हमें तो वो बिल्कुल ही अपने दादा की तरह नजर आते थे।'
उन्होंने इराकी जेल में अपने अंतिम दिन पवित्र क़ुरआन शरीफ़ को पढ़ते हुए बिताए। बार्डेनवर्पर लिखते हैं कि सद्दाम का उन लोगों के प्रति व्यवहार बहुत विनम्र था।
उस समय सद्दाम की सुरक्षा में लगे एक अमेरिकी सिपाही ने उन्हें बताया था कि उसके भाई की मौत हो गई है। यह सुनकर सद्दाम ने उसे गले लगा लिया और कहा था कि, 'आज से तुम मुझे अपना भाई समझो।' सद्दाम हुसैन ने एक और अमरीकी सिपाही से यह भी कहा था कि अगर मुझे मेरा माल इस्तेमाल करने की इजाजत मिल जाए तो मैं तुम्हारे बेटे की पढ़ाई का सारा खर्चा उठाने के लिए तैयार हूं।
सद्दाम ने एक और सैनिक से कहा था कि अगर मुझे मेरे धन का इस्तेमाल करने की अनुमति मिल जाए, तो मैं तुम्हारे बेटे की कॉलेज की शिक्षा का खर्चा उठाने के लिए तैयार हूं।
एक रात सब ने बीस साल के सैनिक डॉसन को एक बिना साइज के कपड़े पहनकर घूमते हुए देखा। पता चला कि डॉसन को सद्दाम ने अपना सूट तोहफे में दिया है। अमेरिकन बार्डेनवर्पर लिखते हैं कि, 'कई दिनों तक हम डॉसन पर हंसते रहे थे, क्योंकि वो उस सूट को पहनकर इस तरह चलता था, जैसे कि वो किसी फैशन शो की 'कैटवॉक' में चल रहा हो।'
सद्दाम और उनकी सुरक्षा में रखे गार्डों के बीच दोस्ती बढ़ती ही चली गई, हालांकि उन सभी को यह साफ आदेश था कि सद्दाम के नजदीक आने की बिल्कुल भी कोशिश न करें। सदाम हुसैन को इस मुकदमे के दौरान दो जेलों में रखा गया था। एक तो बगदाद में अंतरराष्ट्रीय ट्राइब्यूनल का तहखाना था और दूसरा उत्तरी बगदाद में उनका एक महल था जो कि एक द्वीप पर बना हुआ था, जिस पर एक पुल के जरिए ही पहुंचना मुमकिन था। बार्डेनवर्पर आगे लिखते हैं, 'हमने सद्दाम को उससे ज्यादा कुछ भी दे पाए जिसके कि वो वाकई में हकदार थे। लेकिन फिर भी हमने उनके आत्मसम्मान को कभी भी आहत नहीं किया था।' अमरीकन सिपाहियों में से स्टीव हचिंसन, क्रिस टास्कर और दूसरे गार्डों ने एक स्टोर रूम को सद्दाम के दफ्तर का रूप देने की कोशिश भी की थी।
सद्दाम हुसैन को 'सरप्राइज' देते हुए पुराने कबाड़ खाने से एक छोटी मेज और चमड़े के कवर की कुर्सी निकालकर मेज के ऊपर इराक का एक छोटा सा झंडा लगाया गया। बार्डेनवर्पर लिखते हैं, 'इस सबके पीछे मकसद ये था कि हम जेल में भी सद्दाम के लिए एक शासनाध्यक्ष के दफ्तर जैसा माहौल बनाने की कोशिश कर रहे थे। जैसे ही सद्दाम उस कमरे में पहली बार आए तो एक सैनिक ने लपक कर मेज पर जमीधूल को झाड़न से साफ करने की कोशिश की थी।' सद्दाम हुसैन ने इस 'जेस्चर' को नोट किया और वो कुर्सी पर बैठते हुए जोर से मुस्कुराए थे।
उस बाद यह रोज का मामूल बन चुका था सद्दाम रोज उस कुर्सी पर आकर बैठते और सभी सैनिक उनके सामने रखी कुर्सियों पर बैठते। ऐसा माहौल बनाया जाता जैसे की सद्दाम अपना दरबार लगा रहे हों। बार्डेनवर्पर आगे लिखते हैं कि वह सभी सैनिक मिलकर ऐसी कोशिश करते कि सद्दाम हुसैन को खुश रख पाए उसके बदले में सद्दाम हुसैन भी अपने हर गम भुला कर उनके साथ हंसी मजाक करते और वातावरण को खुशनुमा बयान बनाने का प्रयास करते थे।
कई सैनिकों ने बार्डेनवर्पर को यह बताया था कि उन्हें पूरा विश्वास था कि 'अगर उनके साथ कुछ भी बुरा हुआ होता, तो सद्दाम उन्हें बचाने के लिए अपनी जान की बाजी भी लगा देते।'सद्दाम हुसैन को जब भी मौका मिलता, तो वो अपनी रक्षा कर रहे सैनिकों से उनके परिवार वालों का हालचाल जरूर पूछते थे।
बार्डेनवर्पर की इस किताब में सबसे चकित कर देने वाला किस्सा वो है जहां या लिखा गया है कि सद्दाम हुसैन के शहीद हो जाने पर इन सभी अमरीकन सैनिकों ने बाकायदा शोक मनाया था।
इन सैनिकों में से एक एडम रौजरसन ने विल बार्डेनवर्पर को बताया कि 'सद्दाम हुसैन को फांसी दिए जाने के बाद हमें रोज यही महसूस होता था कि हमने उनके साथ गद्दारी की है। हम अपने खुद को सद्दाम हुसैन का हत्यारा समझते थे। हमें ऐसा लग रहा है कि हमने एक ऐसे शख्स को मार दिया जो हमारे बहुत करीब था।
उन सैनिकों में से एक स्टीव हचिन्सन ने सद्दाम हुसैन को फांसी दिए जाने के बाद अमेरिकी सेना से हमेशा के लिए इस्तीफा दे दिया था। स्टीव हचिन्सन 2017 तक जॉर्जिया में बंदूकों और टैक्टिकल ट्रेनिंग का कारोबार करते थे।
वो काला दिन 30 दिसंबर, 2006 था जब सद्दाम हुसैन को तड़के तीन बजे जगाकर उन्हें बताया गया कि थोड़ी देर में ही उन्हें फांसी दे दी जाएगी। सदाम हुसैन वो चुपचाप नहाए और खुद ही अपने आप को फांसी के लिए तैयार किया था।
अपनी फांसी से कुछ मिनटों पहले सद्दाम ने सिपाही स्टीव हचिन्सन को अपनी जेल कोठरी के बाहर बुलाकर खींचे से अपना हाथ बाहर निकाल कर अपनी 'रेमंड वील' कलाई घड़ी उन्हें सौंप दी थी। जब हचिन्सन ने इसका विरोध करना चाहा तो सद्दाम ने जबरदस्ती वो घड़ी उनकी कलाई में पहना दी थी। हचिन्सन के जॉर्जिया के घर में एक सेफ के अंदर वो घड़ी आज भी टिक-टिक कर रही है।
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